A Wounded Mother…
She paid for her forbearance, she paid for being your Mother,
Bruised, Pained & Broken, she badly needs to recover,
Exploited by your greed, collapsed by your deeds,
She surrendered all her assets, for your ever-growing needs,
Ransacked with your wants & never-ending desires,
Her soul was also sold, to expand your empires.
Her wounds were flayed, sorrowing her heart,
Her wailing was ignored, you never gave a thought,
A healing & tending mother now longs to be healed,
Your reality is disclosed, and ugliness revealed,
Strangled with your evils, she won’t take it anymore,
Enough is enough! It’s time to settle the score,
You left her no option, she confined your moves,
No wandering, no noises, till everything improves,
Your extinction was never a part of her plan,
She will still be a saviour, as much as she can,
Her recovery was rejoiced by every other creature,
‘Wake Up, before it’s too late’ warned the Mother Nature!
-Niraj Gera
बिखरे ख्वाब
कुछ बिखरे ख्वाब टूटे दिल में, कंधे पे बोझिल चुनौतिया,
आँखों में आंसू ले विदा हुआ, है वक्त की कैसी कसौटिया|
असमंजस की इस हालत में, कुछ सहमे से मलाल हैं,
शीशो सी उम्मीदे अब टूटी है, टूटा तेरा माया जाल है |
भूखा ही यहाँ पे आया था, जाता भी यहाँ से भूखा हूँ ,
दौलत के कुँए तेरे खोदे थे, पर मैं तो फिर भी सूखा हूँ |
तुझको मैं ढूंढ़ता ही रहा , झुलसा जब गर्मी के झोंको से,
हसरत थी कोई रोकें मुझे, मेरी मेहनत से बने झरोखो से |
अफवाओं के उस बाजार में, कुचले कितने अरमान थे,
हर दर से ठोकर मिलती रही, अरे हम भी तो इंसान थे |
सड़को पे जन्मे मासूमो के, अनकहे अनसुने सवाल है,
घड़ियाली आंसू क्यों बहा रहे, सियासत के जो दलाल है |
जानता हूँ कि दोषी नहीं तू , पर निर्दोष भी न कहलायेगा,
जब वक्त पूछेगा सवाल सख्त, तू उसको क्या समझायेगा?
कुछ बिखरे ख्वाब टूटे दिल में, कंधे पे बोझिल चुनौतिया,
आँखों में आंसू ले विदा हुआ, है वक्त की कैसी कसौटिया
– नीरज गेरा
धधकती निर्भया !!
उस रात की दरिंदगी ने, मुझे अंतःकरण तक जला दिया
वह राख अब तक है धधक रही, क्यों मुझको तुमने भुला दिया ?
दिया था नाम तुमने निर्भया, उस शब्दार्थ की चुनौती हूँ मैं,
नारीत्व की माला से बिखरी थी, संशय से कम्पित ज्योति हूँ मैं,
अब न्याय की बूंदो को तरसती, जलती दहकी सी राख हूँ मैं,
व्यवस्था की त्रुटिया उजागर करती, निर्भय और गुस्ताख़ हूँ मैं,
देश की सहमी बेटियों की, चीखती सी आवाज़ हूँ मैं,
न्याय के विलम्ब से घायल होकर, शोषित और नाराज़ हूँ मैं,
हैवान है जीवित, भूमि पर क्यों? इस प्रश्न का लज्जित चिन्ह हूँ मैं,
उस रात भी रक्तरंजीत थी मैं, इस रात भी रक्तरंजीत हूँ मैं – २
– नीरज गेरा
अंतःकरण -अंतरात्मा, आत्मा, शब्दार्थ – शब्द का अर्थ, रक्तरंजीत- खून से लथपथ ,
लज्जित- शर्मसार, धधक – आग की लपट,संशय – शक
रंगो का युद्ध
लाल लहू से रक्तरंजित , लड़खड़ाई भारत माँ मेरी।
इस विविध रंगो के युद्ध में , निकली जाती है जां मेरी।
कभी ‘हरा’ रंग हुआ है बेलगाम , कभी ‘भगवे’ में उबाल है।
कभी ‘पीला’ क्रोध से है भरा , कभी ‘नीले’ की टेड़ी चाल है।
क्यों हर तरफ यह शोर है? क्यों काली घटा घनघोर है?
दंगो की इस स्याह रात में, आती न नज़र अब भोर है।
हर उत्सव लहूलुहान है, सड़को पर बिखरी जान है।
फ़ीका सा लगता तिरंगा अब, कुछ कमतर देश की शान है।
हर आँख लहू से है भरी , हर ह्रदय वज्र से भर गया।
आक्रोश की इस अग्नि में जल के, अन्तःकरण भी मर गया!
अपने मतों के लोभ में , तेरी मति को भ्रमित किया।
सत्ता के लोभी नेताओं ने, इस पावन भूमि को श्रापित किया।
अब आँख खोल, यह खेल समझ, क्यों उंगलियों पे रहा तू नाच है ?
धर्म जाति पर पनपे यह नेता, सौहार्दता पर गिरी गाज़ है।
रंगो के उन्माद में ऐ मदमस्त हाथी, जो रौंद रहा वो स्वदेश है।
मिलाप निष्कलंक ‘श्वेत’ है , टकराव टूटता देश है।
यदि ठान ले तू आज से, कि सर्वोपरि मेरा देश है।
विश्व पटल पर चमकेगा भारत, बस इतना ही मेरा सन्देश है |
– नीरज गेरा
A Small Urdu poem on Pollution written by Niraj Gera on Pollution 🙏
—————–
Deeply concerned about the rising level of pollution in Delhi & other parts of the world. Recently after Diwali Air pollution levels skyrocketed in New Delhi & it was ranked the most polluted city in the world. He thought it’s high time & we should all work towards fighting with pollution.
Niraj decided to give expression to my feelings through a small Urdu poem. He just hopes it will be able to make government & people aware of their (our) own wrongdoings and may inspire people to take some corrective measures, before its too late !!
—————————-
नकाबपोश दहशतगर्द
यों मौत की दहलीज़ पे , सोंधी सी थी, जो हवा,
क्यों बद्दुआ सी लग रही, ज़िन्दगी की थी जो दुआ,
दहशत-गरदो में घिरी, आंखे इसकी पथराई सी,
हालत उसकी यह देख कर, दुनिया भी है घबराई सी,
यह नक़ाब वाले दहशतगर्द , आते नज़र, खुद दहशत में ,
पहले किया यह क़त्ले-आम, अब कहते, थे हम गफलत में,
धुएं से लिपटी हवा देख, मंज़र ग़मगीन अब हो गया,
उस मौत की आहट को सुन, ज़माना सारा रो गया,
है खून से लथपथ पड़ी, कुछ गुबार, कुछ भड़ास है,
उखड़ती इन साँसों के बीच, नयी ज़िन्दगी की आस है,
कुछ मरती धीमी सी आवाज़ में, लगी देने पैगाम वो,
अब तो होश संभाल लो, की अब तो बचा लो, जहान को
I am humbled to share this video on the very auspicious occasion of Gurudev’s Birthday ie 13th May 2020, I am uploading this video on my youtube channel, to express my immense gratitude for Poojya Gurudev Sri Sri Ravi Shankar ji. I made this video last year when one more travel experience came off my bucket list and the experience was phenomenal. I am simply overjoyed to share the video of this long-awaited travel experience. This video is very close to my heart as it expresses my paragliding experience from the perspective of a devotee. I hope to share more of such experiences of life, travel stories, heroic & motivational stories, motivational/spiritual talks & other videos on similar lines. Heartfelt thanks to Gurudev Sri Sri Ravi Shankar ji for giving this beautiful life to me. Special thanks to my AOL family, my relatives, friends, social media friends for all your encouragement, love and blessings. Eternally Grateful – – Niraj Gera
अंधेरो के वीर
कोरोना से युद्ध के वीर योद्धाओं को समर्पित इस कविता के माध्यम से मैं अपनी व प्रत्येक देशवासी की कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ
हम सब आपके इस सुन्दर जज़्बे को सलाम करते है |
Its a salute to all the doctors, health staff, police men & other corona warriors working tirelessly.
FAQs
Media Enquiries
Join Us